Silence
मौन, हिंदू दर्शन में, जिसका अर्थ है आंतरिक शांति । संतो, मुनियों द्वारा अंत: मौन ही धारण किया गया। इसी मौन को धारण कर बड़े-2 तप और आध्यातिमकता को उन्होंने अर्जित किया। मौन-साधना शुद्ध मानसिक प्रवृत्तियों को निखारती है।मौन से सुखद जीवन की प्राप्ति होती है।
तप कर, योग कर,
मन को कठोर कर,
मौन साधना कर,
मौन धर।
मुख्यतः मौन को दो भागो में बाँटा जा सकता है।
1 आंतरिक मौन अर्थात् मन का मौन । अपनी वाणी पर नियंत्रण रख खुद को ध्यानमग्न करना । इस मौन की प्राप्ति ध्यान (meditation)और मानसिक जापदि से
मिलती है। यही मौन हमें आंतरिक और समृद्ध शक्तियाँ प्रदान करता है। इसी मौन से हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्ञान
अर्जित किए और वैदिक काल को ऊँचाईयो तक पहुंचाया।
मन की शांति,
जीवन की समृद्धि ,
ज्ञान की वृद्धि,
मौन धर ।
2 बाह्य मौन अर्थात वाणी पर नियंत्रण । हम अक्सर अपने शब्दों के माध्यम से परिस्थितियों को बिगाड़ देते है।ये कटु वचन हमारे व्यक्तित्व को दुषित करते हैं। वाणी को वश में करना, कम बोलना इसके अंर्तगत ही आता है। अतः जितना जरूरी हो, उतना ही बोले । शब्दों में बहुत उर्जा है इसे युं ही न गवाएं । अप्रिय परिस्थितियों से उभरने के लिए मौन अत्यन्त आवश्यक है।
वाणी कटु हो,
शब्द व्यर्थ हो,
प्रकरण उलट हो,
मौन धार।
मौन और मन
मौन में वह ताकत होती है जो नर की आंतरिक शक्ति को उजागर करती है। मौन नर को किसी सुमन की भांति सुगंधित करता है। जीवन में यदि कुछ प्राप्त करना है तो मौन अनिवार्य है। सत्य पथ पर चलने हेतू मौन साधना अत्यंत आवश्यक है। मौन धारण करने ने हम आत्म चिंतन कर सकते हैं और लक्ष्य को सुलभता से प्राप्त कर सकते हैं।
कल्पना की उड़ान,
जीवन में उठान,
लक्ष्य में ऊंचान,
मौन धर ।
मौन और वैदिक काल
मौन ही था जो ऋषि-मुनियों को सर्वोपरि बनाता था। इसके बल पर ही वे तप कर जाते थे और कई सिद्धियों पर अपना आधिपत्य जमाते थे। मौन भाव वैदिक काल का सर्वोतम गुण है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि मौन धारण कर स्नानादि पश्चात्र पूजा करने से सौ गोदान का पूण्य प्राप्त होता है अर्थात मौन धारण करने से अर्थात मन शान्त करने से ही भक्ति-भाव उजागर होता है।
मन का सौहार्द,
तन का पुरुषार्थ,
जीवन का कृतार्थ ,
मौन धर ।
अर्तशक्ति और मौन
मौन वह शक्ति है जो नर की अंर्तशक्ति को उजागर करती है। और यह अंर्तशक्ति नर को सर्वश्रेष्ठ बनाती है। दूसरों की मदद करना, उनके दुखो को समझना समाज हेतु कार्य करना इत्यादि उसकी आदत में मिल जाते है। इसी शक्ति के कारण के ऋषि-मुनि पूरी मानव-जाति के कल्याण के बारे में सोचते थे।
मौन की साधना हो,
सफूर्ति का बल हो,
जीव वरदानी हो,
मौन धर ।
मौन और स्वास्थय
स्वस्थ जीवन और मौन को एक-दूसरे का समानार्थक भी कहे तो उचित होगा क्पूंकि यदि हम कटु वाणी का उपयोग करते है हम अपनी उर्जा खत्म कर देते है और उर्जा की कमी ने हम अस्वस्थ हो जाते हैं। अक्सर देखा है कि क्रोधित व्यक्ति रोगों के आधीन होते है। अतः इन कटु शब्दों का परित्याग हमें हर क्षण करना होगा तांकि हम एक स्वस्थ जीवन जी सके।
रोगों से मुक्त हो,
योग के पास हो,
उर्जा पर ध्यान हो,
मौन धर।
तनाव और मौन
नर खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वो जल्दी ही बैचेन हो जाता है और क्रोध उसपर हावी हो जाता है, अगर सामने वाला इसी प्रवृत्ति का मिल जाए तो परिस्थिति और भी कठिन हो जाती है। नतीजन नर तनावग्रस्त हो जाता है और ऐसे व्पक्ति को रोग शीघ्रता से अपना शिकार बनाते हैं। अतः मौन साधना हर व्यक्ति की जरूरत है। आधुनिक युग मैं इसकी महत्ता को समझने की आवश्यकता है तांकि हम तनाव से दूर रहे।
वाणी पर नियंत्रण हो,
क्रोध से दूर हो,
रोग पर विजयी हो,
मौन धर।
अततः मनुष्य प्राचीन काल से मौन की साधना कर रहा है। यह सही है आज मनुष्य ने इसकी महत्ता को खुद से दूर कर दिया और मौन त्याग विपदाओं से घिर रहा है। मनुष्य को समझना होगा मौन साधना मन को ही नहीं, अंतरात्मा को भी नव चेतना और सफूर्ति देती है । मौन से ही अतीत के तार जुड़ते है और सद्विचार आते है जो जीवन को बेहतर बनाते है। आधुनिक समय में तो सोशल मीडिया के जरिए मेडिटेशन (ध्यान) आज के युग का मौन -साधना अंग के लिए उपयुक्त उपाय है।अगर हम दिन के कुछ पलों में से कुछ पल ध्यान को दे तो कहा हमे रचनात्मकता प्रदान करता है। हमें उर्जा से भरता है, हमारी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। मौन की साधना, साधक को अनेक वरदानो से परिपूर्ण करती है।
संतो का बल,
मुनियों का तप,
पुण्य का फल,
मौन धर।