Sushma Vohra, Author at News G Edu World

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Author name: Sushma Vohra

I am Sushma, a writer, my journey revolves around words. Weaving a web of thoughts and stories is my goal. In the field of storytelling, I live characters in imagination, express emotions in poetry. Writing is my pride where there is poetry, story, article everything. My biggest wish is that my writing spreads light in the society, infuses new life.

Sushma Vohra
World Environment Day
Science

WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024

WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024  विश्व पर्यावरण दिवस भूला कर्तव्य, बना स्वार्थी, सुध लो अब अपनी, लो संकल्प, रोपो वृक्ष , बिखरे सुखद ज्योति। हरियाली, मन भावन है, सृष्टि के कण में रमती , रोपो बीज, करे श्रृंगार, रंग-बिरंगे सुमन से धरती ।। मानव सृष्टि का सर्वोत्कृष्ट प्राणी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। मनुष्य की बुद्धि, शक्ति और क्षमता ने दुनाया भर को सर्वोत्तम आविष्कार दिए है। आधुनिकता के राज में हम आसमान छू रहे है। ये मानव की महत्वकांक्षा ही तो थी  कि आज हम चांद, मंगल से मिलन की तैयारी में कामयाबी हासिल कर रहे हैं। परन्तु हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है, यहाँ भी है। विज्ञान चमत्कार का दूसरा नाम है, यह एक वरदान है लेकिन इसके उतने ही नुकसान भी है। और इन नुकसानों के कारण हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है, सो विज्ञान वरदान होने के साथ-२ अभिशाप भी बन रहा है। WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024 क्या है पर्यावरण          अर्थात् परि + आवरण । परि मतलब जो हमारे चारो और है और आवरण मतलब जिसने हमें चारो और से घेरे हुए है। और ये आवरण हमारे पंच तत्वों अर्थात पृथ्वी, आकाश, जल, वायु, अग्नि सबके लिए हानिकारक है। इन्हीं सब के कारण धरती का बंजरपन, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, वन कटाव आदि सतत् बढ़ रहे हैं।                ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि है, जो मुख्यतः मानव गतिविधियों से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों (जैसे CO₂, मीथेन) के कारण होती है। जीवाश्म ईंधनों का जलना, वनों की कटाई, और कृषि गतिविधियाँ इसके प्रमुख कारण हैं। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र स्तर बढ़ रहा है, और मौसम चरम स्थितियों का सामना कर रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, ऊर्जा दक्षता बढ़ाना, वनीकरण, और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का पालन आवश्यक है। ग्लोबल वार्मिंग मानवता और पर्यावरण के लिए एक गंभीर चुनौती है।   WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024 पर्यावरण दिवस पर्यावरण सरंक्षण हेतू विश्व भर में कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। जन-2 तक से पहुंचाने और जागरुकता फैलाने के लिए पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने 1972 में की थी और तबसे यह विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।हर वर्ष इस दिन के लिए के थीम  रखा जाता है जिसके तहत कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस साल का थीम है- ‘भूमि पुनस्थार्पन, मरुस्थलीकरण और सूखा प्रतिरोधक क्षमता” इस वर्ष की मेजबानी सऊदी अरब कर रहा है। इस थीम का उद्देश्य है पर्यावरणीय संकटो का समाधान निकालना, उत्पादक भूमि का पुनस्थार्पन करना।  वृक्षारोपण , जल प्रबंधन, स्थानीय और राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण  जिससे पूनस्थार्पना और सुखा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा मिल सके। आगे हम यह जानने का प्रयास करते है कि इस थीम का महत्व क्यों है. भूमि पुनस्थार्पन अर्थात वो भूमि जो क्षतिग्रस्त हो गई या बंजर हो गई उस भूमि को उसकी प्राकृतिक अवस्था में लाना जिससे वह भूमि ऊपजाऊ हो । इससे न केवल उसकी गुणवता अपितु स्थानीय लोगो की आजीविका में भी सुधार होता है जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता है।  पुर्नस्थापित भूमि जल धारण क्षमता रखती है और इससे जैव विविधता में वृद्धि होती है जिससे प्रारिस्थितिकीय तंत्र मजबूत होता है मरूस्थलीकरण मरूस्थलीकरण एक गंभीर समस्या है जिसमें ऊपजाऊ भूमि बंजर भूमि में बदल जाती है ऐसे  भूमि की पुर्नस्थापना हेतू कुछ टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ लागू की जानी चाहिए। वृक्षारोपण मृदा सरंक्षण का जरुरी अंग है इससे न केवल मृदा सरक्षंण होता है बल्कि यह कार्बन अवशोषण में भी सहायक है। इसके लिए जरूरी है स्थानीय लोगो के साथ मिलकर नितियां बनानी चाहिए | WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024 सूखा प्रतिरोधक क्षमता अर्थात ऐसे यंत्रो को अपनाना जो सूखे के प्रभाव को कम करे जैसे जल प्रबंधन, सिंचाई प्रणालिया, स्थानीय पौधों का उपयोग । सही जल प्रबंधन और सरंक्षण तकनीको का उपयोग इस प्रभाव को बढ़ाने में मदद करते है। आधुनिक और नई सिंचाई प्रणालियां अपनाकर जल का अधिकतम उपयोग निश्चित किया जा सकता है। WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024 निष्कर्ष इस थीम की सफलता को अच्छी नीतियों की आवश्यकता है जिसमें वैश्विक संधिया जैसे UNCED, (United Nation nvent) आदि के तहत पहल की जाती है। इनके साथ-2 ही स्थानीय और राष्ट्रीय नीतियों का  निर्माण और सहयोग भी जरूरी है। इस दिवस का मूख्प   उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना है। विश्व प्रथर्यावरण दिवस 2024 का थीम अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रंशसनीय है। पर्यावरण सरंक्षण हेतू  इस दिन कई  समारोह, वृक्षारोपण इत्यादि के कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। यह थीम न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बल्कि मानव समाज की स्थिरता और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिशा में ठोस कदम उठाकर हम एक स्वस्थ और स्थायी भविष्य  की दिशाा बढ़ सकते है।        आओ, आज फिर बनाए मिट्टी के घरोंदे ,       सोंधी-2 खुशबु वाले मिट्टी के घरोंदे ।       रोपे बीज, पाए वृक्ष, हरी-भरी वंसुधरे,       दरख्त से, बेल से, पुष्प से भरे वसुधरे। WORLD ENVIRONMENT DAY THEME 2024 Read more: World Environment Day

Trends

Politician Sushil Modi | Now Dies At 72 on Delhi AIIMS

Politician Sushil Modi भारतीय जनता पार्टी को उस समय भारी धक्का लगा जब श्री सुशील मोदी के निधन का समाचार आया। सुशील जी का विहार में भाजपा के उत्थान में बहुत बड़ा हाथ था। सुशील मोदी लगभग 30 साल विहार की राजनीति में सक्रीय रहे। विहार में भाजपा की लंबे समय तक पहचान रहे, पूर्व मुख्यमंत्री, राज्य सभा के पूर्व सांसद श्री सुशील मोदी सोमवार को अपना शरीर त्याग ब्र्ह्मतत्व मे लीन हो गए । मोतीलाल और रत्ना देवी के यहाँ 5 जनवरी 1952 को श्री सुशील का जन्म हुआ। इन्होने अपनी स्कूली शिला सेंट माइकल स्कूल से ली। 1962, भारत-चीन युद्ध के दौरान स्कूल के छात्रों को शारीरिक फिटनेस व परेड आदि के प्रशिक्षण के लिए सिविल डिफेंस के कमांडेंट नियुक्त किए गए थे उसी समय नौजवान सुशील ने RSS का हाथ थाम लिया । 1968 में उन्होने RSS का अधिकारी प्रशिक्षण कोर्स ज्वाइन किया वो तीन साल का होता है। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद RSS के कार्यकर्ता बन गए। कंई जगहों पर नईं शाखाएं खुलवाई। उनके पिता का कपड़े का व्यापार था वो चाहते थे कि वो पारिवारिक व्यापार को आगे बढ़ाएं बावजूद इसके सुशील जी ने सेवा का रास्ता चुना। 1987 में उन्होंने एक ईसाई लड़की जेसी जॉर्ज से विवाह किया। इनके दो बेटे हैं उत्कर्ष और अक्षय। 1990 से उनका राजनीतिक करियर शुरू हो गया और जो सफल रहा। 2004 में लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। 2000 में नीतिश कुमार सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी रहे। 2005 में लोक सभा से इस्तीफा दे उन्होने बिहार के उपमुख्यमंत्री का पदभार संभाला 2017 में JDU-RJD ग्रैंड एलायंस सरकार के पतन में मुख्य भूमिका सुशील मोदी की ही थी। 3 अप्रैल को उन्होंने पहले ही सार्वजनिक कर दिया था कि वो पिछले ह माह से कैंसर से जूझ रहे हैं। कैंसर तो. कैंसर है वो समय नहीं देता, 40 दिनों के भीतर ही श्री सुशील मोदी ने अपने भीतर प्राण त्याग दिए। भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने शोक संदेश दिया। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने दुख व्यक्त किया उन के परिवार को सांत्वना दी। Read also: Sushil Kumar Modi Ex Deputy Chief Minister Of Bihar, Today Dies At 72 on Delhi AIIMS

Life

Divine Gift Mother in 2024

Divine Gift Mother देवो स्वरुपा – मां ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि” “मां और मातृ‌भूमि स्वर्ग से भी ऊपर है। रावण वध के उपरांत जब श्री राम ने विभिषण को लंका का राजा घोषित कर दिया। उसके पश्चात लक्ष्मण ने उन्हें कुछ दिन और वहाँ रुकने को कहा क्यूंकि लंका एक रमणीय स्थान था। पर श्री राम ने उत्तर दिया चूंकि माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है अतः हमें अयोध्या लोटना होगा। सत्य ही है मां के चरणों में स्वर्ग है, माँ एक ऐसा शब्द जिसके लिए शब्द ही कम पड़ जाएं। मां दयालु, सुरक्षात्मक, मजबूत, असाधारण देखभाल करने वाली एक भी प्यारी सी दुआ जिस के लिए विशेषण कहाँ से लाऊं, समझ नहीं आ रहा। मां को लक्ष्मी का प्रर्याय कहना अनुचित नहीं होगा । लक्ष्मी सृष्टि का पालन करती है और माँ बच्चे का । अपने अंदर नौ महीने रख शिशु को धरा पर लाती है, उसे हर बुरी नजर से बचाती है, उसमें संस्कार भरती है। कहते हैं ईश्वर के बाद मां ही है, जो शिशु को संभाल सकती है। स्नेही मां स्नेह की मूर्त, जिसके पहलू में आते ही शिशु तो शिशु, बड़े भी अपने दुख-दर्द भूल जाते है। उनका स्नेहमयी आंचल धूप से ही नही विपदा में खड़े रहने की ताकत देता है। उनका आशिर्वाद भरा हाथ जीवन के हर पथ पर आगे बढ़‌ने का मार्ग प्रशस्त करता है। संजीवनी माँ किसी संजीवनी बुटी से कम नहीं है उसकी घरेलु रैमिडिस क्या कमाल की होती है। पेट दर्द हो तो अज़वायन, गैस हो तो काढ़ा , कुछ भी हो देसी इलाज हरद‌म तैयार होता , उन पाँच दिनों वाला काढ़ा शरीर में जान डाल देता था। आधी बिमारी तो मां के सांतवना शब्दों से ही ठीक हो जाती है। गजब की डाक्टर होती है मां । प्रेरणा मां प्रेम और करुणा का प्रतीक तो है साथ-र प्रेरणा का स्त्रोत भी है। माँ ही बचपन से बच्चे के अंदर अच्छे-बुरे का एहसास भरती है। उसकी हर सीख जादू का काम करती है। सुन्दर भावों से मां हमारी गल्तियों को सुधार एक नई राह दिखाती है। सिखाना हजारों फूल मिलकर माला बनाते है, हजारों दीए मिलकर आरती सजाते है, हजारों बून्द मिलकर सागर बनाती है पर मां अकेली ही शिशु का सृजन करती है। उसे सिखाती है, एक अच्छे इन्सान को उसमें जगाती है, उसकी भूलों को सुधारती है। हर विपदा में खड़ा रहना सिखाती है ,भवरो से भरी इस दुनिया में उसके लिए लाईट हाऊस का कार्य करती है । बच्चे का मानसिक , शारीरिक उतौर आध्यात्मिक विकास के लिए उसे नई नई सीखे देती है तांकि वो हर क्षेत्र में अग्रसर रहे।करा- मां किसी भी नन्चे का सहारामां किसी भी बच्चे का अभूतपूर्व सहारा होती है। बड़े बुजर्ग अक्सर कहते है कि ईश्वर हर जगह नहीं रह सकता इसलिए उसने माँ को बनाया तांकि बच्चे को कोई तकलीफ न हो इन्सान कितना भी बड़ा हो जाए पर मां का बच्चा ही होता है इसलिए जब भी कोई समस्या उसे आ घेरती है तो उसका सबसे बड़ा सहारा मां ही होती है । शिक्षा शिक्षा हर क्षेत्र में अपना महत्व रखती है। पर- जो शिक्षा मां देती हैं वो जीवन में सुमन खिलाती है। एक अच्छा इन्सान, एक मेहनतकश इन्सान, एक मददगार इन्सान सब बनने की प्रेरणा मां की शिक्षा होती है। माँ वो पहला गुरु है जो मानव जाति के लिए सर्वोपरि है। समर्थन मां सही परिस्थितियों में अक्सर बच्चों के साथ खड़ी रहती है। मां अंधकार से रोशनी की तरफ लेकर जाती है। हर मुश्किल में मां समर्थन करती है। परे परिवार को साथ रखना, रिश्तेदारी को मजबूती से बाँध कर रखने में मां हर समय अपना समर्थन देती है। पिता परिवार के लालन-पोषण और सुरक्षा के लिए सदा समर्पित होता है तो मां परिवार की एकता का मजबूत स्तंभ होती है साथी मां इन्सान की पहली गुरू, पहला दोस्त पहला साथी होती है। हर पल अपने बच्चों का साथ देती है। जिनकी मां नहीं होती उनका दर्द कोई समझ नहीं सकता। छोटी सी तकलीफ भी मां को रूला देती है। बच्चों की खातिर मां अर्श तक हिला देती है। आदर मां इक् दुआ है, कविता है, सौम्य है, कोमल है, दृढ़ निश्चयी है, लौह स्तंभ है। मनुष्य को मां के लिए सदैव आदर भाव रखना चाहिए। हमारे माता-पिता वो है जिनसे हमारा वजूद है। वो दोनो हमारे जीवन की नींव है। नींव मजबूत होगी तो मनुष्य खुद-ब-खुद मजबूती से खड़ा होगा । अतः ऐसे देवता स्वरुप माता-पिता को सदैव आदर करना चाहिए। मां आदरणीय है पुजनीय है। मां जो निष्काम भाव से दिन भर अपने कार्यों में लगी रहती है बावजूद इसके उसके माथे पर एक शिकन नहीं होती। मां सबके जीवन में पहली, सर्वश्रेष्ठ ,वास्तविक, सच्चा साथी होती है। जिस प्रकार सूरज के बिना दिन अधुरा होता है उसी प्रकार मां के बिना मनुष्य अधुरा होता है। जानते है मां शब्द की उत्पति कैसे हुई। इस बारे में कंई मत है 1 पुराणों में मां लक्ष्मी से इसे जोड़ा गया है क्यूंकि मां लक्ष्मी सृष्टि का पालन करती है और मां शिशु के पालन पोषण का ध्यान रखती है इसलिए मां शब्द लक्ष्मी जी के मां सम्बोधन से निकला है । 2 मां शब्द की उत्पति गोवंश से भी स्वीकारी गई है क्यूंकि जब गाय का बच्चा जन्म लेता है और रंभाता है तो जो स्वर निकलता है , सुनाई देता है और गाय ही एकमात्र ऐसा जीव है जिसे माता कहा जाता है। 3 कंई भाषाविंदों के मतानुसार छोटे बच्चे जब बोलने की शुरूआत करते है तो उनके मुख से निकली ध्वनियों से ‘मां’ शब्द अवतरित हुआ। फिलहाल सोचने का विषय यह नहीं कि मां शब्द कहां से आया, विषय यह कि मां की महता क्या है। मां एक मर्मस्पर्शी शब्द जो अनमोल है। मां प्रेरणा है, सुपर हीरो है, अच्छी दोस्त है, मार्गदर्शक है। माँ के बिना जिंदगी बदसूरत है। मां है तो जहान् अपना है। मां वो है जिसकी गहराई नही नापी जा सकती बस उसके चरणों में केवल स्वर्ग महसूस किया जा सकता है। Read more: तेलुगू और कन्नड़ टीवी एक्ट्रेस पवित्रा जयराम का निधन

Silence
Life

SILENCE

Silence मौन, हिंदू दर्शन में, जिसका अर्थ है आंतरिक शांति । संतो, मुनियों द्वारा अंत: मौन ही धारण किया गया। इसी मौन को धारण कर बड़े-2 तप और आध्यातिमकता को उन्होंने अर्जित किया। मौन-साधना शुद्ध मानसिक प्रवृ‌त्तियों को निखारती है।मौन से सुखद जीवन की प्राप्ति होती है।                                  तप कर, योग कर,                       मन को कठोर कर,                        मौन साधना कर,                        मौन धर। मुख्यतः मौन को दो भागो में बाँटा जा सकता है।  1  आंतरिक मौन अर्थात् मन का मौन । अपनी वाणी पर नियंत्रण रख खुद को ध्यानमग्न करना । इस मौन की प्राप्ति ध्यान (meditation)और मानसिक जापदि सेमिलती है। यही मौन हमें आंतरिक और समृद्ध शक्तियाँ प्रदान करता है। इसी मौन से हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्ञानअर्जित किए और वैदिक काल को ऊँचाईयो तक पहुंचाया।                 मन की शांति,                 जीवन की समृद्धि ,                    ज्ञान की वृद्धि,                  मौन धर । 2  बाह्य मौन अर्थात वाणी पर नियंत्रण । हम अक्सर अपने शब्दों के माध्यम से परिस्थितियों को बिगाड़ देते है।ये कटु वचन हमारे व्यक्तित्व को दुषित करते हैं। वाणी को वश में करना, कम बोलना  इसके अंर्तगत ही आता है। अतः जितना जरूरी हो, उतना ही बोले । शब्दों में बहुत उर्जा है इसे युं ही न गवाएं । अप्रिय परिस्थितियों से उभरने के लिए मौन अत्यन्त आवश्यक है।                   वाणी कटु हो,                     शब्द व्यर्थ हो,                 प्रकरण उलट हो,                 मौन धार। मौन और मन            मौन में वह ताकत होती है जो नर की आंतरिक शक्ति को उजागर करती है। मौन नर को किसी सुमन की भांति सुगंधित करता है। जीवन में यदि कुछ प्राप्त करना है तो मौन अनिवार्य है। सत्य पथ पर चलने हेतू मौन साधना अत्यंत आवश्यक है। मौन धारण करने ने हम आत्म चिंतन कर सकते हैं और लक्ष्य को सुलभता से प्राप्त कर सकते हैं।                     कल्पना की उड़ान,                   जीवन में उठान,                   लक्ष्य में ऊंचान,                      मौन धर । मौन और वैदिक काल                मौन ही था जो ऋषि-मुनियों को सर्वोपरि बनाता था। इसके बल पर ही वे तप कर जाते थे और कई सिद्धियों पर अपना आधिपत्य जमाते थे। मौन भाव वैदिक काल का सर्वोतम गुण है। हमारे शास्त्रों में  कहा गया है कि मौन धारण कर स्नानादि पश्चात्र पूजा करने से सौ गोदान का पूण्य प्राप्त होता है  अर्थात मौन धारण करने से अर्थात मन शान्त करने से ही भक्ति-भाव उजागर होता है।                   मन का सौहार्द,                  तन का पुरुषार्थ,                    जीवन का कृतार्थ ,                   मौन धर । अर्तशक्ति और मौन                  मौन वह शक्ति है जो नर की अंर्तशक्ति को उजागर करती है। और यह अंर्तशक्ति नर को सर्वश्रेष्ठ बनाती है। दूसरों की मदद करना, उनके दुखो को समझना समाज हेतु कार्य करना  इत्यादि  उसकी आदत में मिल जाते है। इसी शक्ति के कारण के ऋषि-मुनि पूरी मानव-जाति के कल्याण के बारे में सोचते थे।                    मौन की साधना हो,                  सफूर्ति का बल हो,              जीव वरदानी हो,                 मौन धर । मौन और स्वास्थय                  स्वस्थ जीवन और मौन को एक-दूसरे का समानार्थक भी कहे तो उचित होगा क्पूंकि यदि हम कटु  वाणी का उपयोग करते है हम अपनी उर्जा खत्म कर देते है और उर्जा की कमी ने हम अस्वस्थ हो जाते हैं। अक्सर देखा है कि क्रोधित व्यक्ति  रोगों के आधीन होते है। अतः इन कटु शब्दों का परित्याग हमें हर क्षण करना होगा तांकि हम एक स्वस्थ जीवन जी सके।                रोगों से मुक्त हो,             योग के पास हो,               उर्जा पर ध्यान हो,                 मौन धर। तनाव और मौन              नर खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वो  जल्दी ही बैचेन हो जाता है और क्रोध उसपर हावी हो जाता है, अगर सामने वाला इसी प्रवृत्ति का मिल जाए तो परिस्थिति और भी कठिन हो जाती है। नतीजन नर तनावग्रस्त हो जाता है और ऐसे व्पक्ति को रोग शीघ्रता से अपना शिकार बनाते हैं। अतः मौन साधना हर व्यक्ति की जरूरत है। आधुनिक युग मैं इसकी महत्ता को समझने की आवश्यकता है तांकि हम तनाव से दूर रहे। वाणी पर नियंत्रण हो,  क्रोध से दूर हो,रोग पर विजयी हो,मौन धर। अततः मनुष्य प्राचीन काल से मौन की साधना कर रहा है। यह सही है आज मनुष्य ने इसकी महत्ता को खुद से दूर कर दिया और मौन त्याग विपदाओं से घिर रहा है। मनुष्य को समझना होगा मौन साधना मन को ही नहीं, अंतरात्मा को भी नव चेतना  और सफूर्ति देती है । मौन से ही  अतीत के तार जुड़ते है और सद्‌विचार आते है जो जीवन को बेहतर बनाते है। आधुनिक समय में तो सोशल मीडिया के जरिए मेडिटेशन (ध्यान) आज के युग का मौन -साधना अंग के लिए उपयुक्त उपाय है।अगर

update

Great Thinker ——– Ram Manohar Lohia

राम मनोहर लोहिया “ राम मनोहर लोहिया, भारतीय राजनीतिज्ञ और समाजवादी विचारक थे। उनका जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। वे समाज के कमजोर और असहाय वर्गों के लिए समाजवाद के महत्वपूर्ण सिद्धांतों के प्रचारक थे। लोहिया ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम भूमिका निभाई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ साहसिक आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने जातिवाद, असमानता और विदेशी उत्तरदायित्व के खिलाफ अपने जीवन को समर्पित किया। उनके विचारों और कार्यक्षेत्र में वे अद्वितीय और प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। विदेश-विदेश वो घूमा,पर भाया न कोई देश दूजा ,देश प्रेम में अभिभूत क्ष्रद्धा । अपने दम पर बढ़ने वाला ,नव विचारों संग लिए उजाता ,क्रांति का रुख बदलने वाला । पिता से पाई जिसने देशभक्ति,गाँधी से पाई जिसने राष्ट्र भक्ति ,उभरा देशप्रेम जिनकी संगति । समाज था जिनका कर्मक्षेत्र कर्मभूमि भी उनका भारत क्षेत्र ,देश-विदेश में उन्नत हो अपना देश । गाँधी, नेहरू, माकर्स. का,रहा प्रभाव उस पर सदा ,जय प्रकाश से निभाई दोस्ती सदा। आंदोलनों की शान थे ,गाँधी जी की छाया थे ,दुख कष्ट सहा जेल में । गोवा मुक्ति आंदोलन था ,या भारत छोड़ो आंदोलन था ,गांधी जी का साथ न छोड़ी था । क्रांतिकारी, कर्मवीर लोहिया ,नर-नारी में रहे सदा समानता ,रंग- जाति से दूर रहे भावना । देश की अमूल्य धरोहर,महान विचारक मनोहर ,ऐसे थे लोहिया राम मनोहर । स्वरचित सुषमा वोहरा

Lifestyle

Navratri – festival of nine days ( नवरात्रि )

Navratri festival of nine days नवरात्रिनवरात्रि एक ऐसा पवात त्यौहार, जिसे देशभर में पूरी धूमधाम से मनाया जाता है। देश का हर कोना, हर राज्य हर क्षेत्र इसे अपनी परंपरा अनुसार मनाता है। ये त्यौहार ही होते है जो देश की विविधता की एकता का प्रतीक होते हैं। मन आनन्दित होता है जब चारों और से “जय माता की” का आवह्नन होता है। नवरात्रि देवी दुर्गा और उसके नौ रूपों को समर्पित है। पूरे वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं। माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन । इसमें से माघ और आषाढ़ में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा गया है। चैत्र और अश्विन में आने वाली नवरात्रि महत्वपूर्ण होती है। हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से सबसे पहले चैत्र मास में 9 दिन नववरात्रि के होते हैं। इसमें चैत्र माह की नवरात्रि को बडी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। ये चारों नवरात्रि ऋतु परिवर्तन के समय आते हैं। और ये सभी ऋतुओं के संधिकाल में मनाए जाते हैं। नवरात्रि का महत्व सिर्फ धर्म अध्यात्म और ज्योतिष की दृष्टि से ही नहीं अपितू वैज्ञानिक दृष्टि से भी नवरात्रि का महत्व है। ऋतु बदलते समय रोग का भय होता है। और रोग को आसुरी शक्ति से जोड कर देखा जाता है और उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन आदि किया जाता है । जिसमें कई तरह की जड़ी बुटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। नवरात्रि के दौरान हवन स्वास्थ्य के लिए हितकर माना जाता है। शरीर और मन को पुष्ट और स्वस्थ बनाकर नए मौसम के लिए तैयार करने के लिए व्रत किए जाते है। और साथ में भक्ति जुड़ जाए तो अध्यात्मता अपने चरम सीमा पर पहुंच जाती है। हर क्षेत्र इसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है ।गुजरात में यह त्यौहार डांडिया और गरवा मनाया जाता है। भक्ति स्वरूप गरबा आरती सेपहले और डांडिया समारोह के बाद खेला जाता है। पश्चिम बंगाल राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारों में दूर्गा पूजा सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है।यह पूजा वैदिक काल से पहले से चलती आ रही है। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेलो का आयोजन होता है। यद्यपि शक्तिपीठों का महत्व भिन्न है तध्यपि माता का स्वरूप एक ही है। कही पर जम्मू के पास वैष्णों देवी ही ,कही चंडी रूप की पूजा होती है। बिलासपुर हिमाचल में नैना देवी तो वहीं सहारनपुर में शांकुम्भरी देवी के नाम से माता के भारी मेले लगते है। नवरात्रि के नौवे दिन, जिसे नवमी कहते हैं, इस दिन 9 कन्याओं को आमंत्रित करते है व उनकी पूजा आदि करते है ।अष्टटमी को भी कुछ लोग पूजा करते है । इस व्रत के दौरान भक्तजन मांस, शराब, प्याज और लसन नहीं खाते है क्योंकि मानते है कि ये सब नकारात्मक उर्जा को आकर्षित करता हैं।, नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि की अवधि है और पारंपरिक रूप से नए उद्यम शुरु करने के लिए एक शुभ और धार्मिक समय भी है।

Life

तुलसी-पूजन दिवस

तुलसी-पूजन दिवस तुलसी एक ऐसा पौधा जो दैविय और औषधीय गुणों से ओत प्रोत है। सनातन धर्म में इसे पूजनीय और पवित्र माना गया है। इसे देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है और भगवान विष्णु को यह बहुत प्रिय है। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहाँ सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। वास्तु शास्त्र में यह पौधा घरों के लिए कल्याणकारी है। तुलसी को विशेष पद श्री विष्णु ने दिया है। तुलसी पिछले जन्म में वृंदा नाम की लड़की थी, जिसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वो बचपन से ही श्री विष्णु की भक्त थी। बड़े होने पर उसका विवाह राक्षस राज जलंधर से हो गया। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और अपने पति की सेवा में लीन रहती थी। एक बार देवताओं और राक्षसों में युद्ध छिड़ गया। जब जलंधर युद्ध के लिए जाने लगे तो वृंदा ने संकल्प लिया कि वो उसकी जीत की कामना के लिए पूजा पर बैठेगी और राक्षसराज के वापिस आने पर संकल्प तोड़ेगी। वृंदा के व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को मार नहीं पा रहे थे तब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए। श्री विष्णु ने कहा मैं क्या कर सकता हूँ, वृंदा मेरी परम भक्त है। देवताओं ने कोई उपाय सुझाने को कहा तब श्री विष्णु जलंधर का रूप धर वृंदा के महल में आ गए। पति को देख वृंदा पूजा से उठ पति के पास आ गई और उसके चरण- स्पर्श किए, तभी देवताओं ने जलंधर का सर काट दिया और वो सर महल में आ गिरा। सर देख वृंदा हैरानी से श्री विष्णु को देखने लगी, वे अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न पाए। वृंदा ने कुपित हो श्री विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। क्ष्राप के फलस्वरूप श्री हरि पत्थर बन गए । यह देख देवताओं में हाहाकार मच गया वे वृंदा से श्राप वापिस लेने हेतू प्रार्थना करने लगे। तब वृंदा ने श्राप वापिस ले लिया और पति का सर लेकर सती हो गई। उन दोनों की राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ, श्री विष्णु ने उसे तुलसी का नाम दिया और खुद के पत्थर रूप को शालिग्राम का नाम दिया और बोले तुलसी और शालिग्राम एक साथ पूजे जाएगें। तभी से तुलसी पूजनीय हो गई।है। तुलसी की पूजा करने से मन में अच्छे विचार आते हैं। इसका प्रभाव शुभ है जो नकारात्मक शक्तियों का नाश और सकारात्मक उर्जा को आने का मार्ग सशक्त करता है। तुलसी जी का वेदों और पुराणों में भी महत्व लिखा गया है। इसकी पूजा आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है। तुलसी को पुष्पसारा, नन्दिनी, वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता, तुलसी, कृष्ण जीवनी और हरिप्रिया के नामों से भी जाना जाता है। श्री विष्णु जी भक्ति में लीन वृंदा की भक्ति का ही परिणाम है कि निधि वन में केवल तुलसी जी ही विराजमान है लोक किंवदंती है भगवान कृष्ण आज भी वहाँ गोपियों के संग रास रचाते हैं। हमारे साधु संतों ने तुलसी-पूजन दिवस की अवसर पर पूजा विधि के निगम बनाए है। -प्रातः काल स्नानादि से निवृत हो तुलसी को प्रणाम करें। – पूजन संध्याकाल में करें। – चौकी पर वस्त्र बिछाए, तुलसी का पौधा प्रतिष्ठित करें, शालिग्राम का आसन लगाए और उन्हें बिठाएं, कलश में जल भर कर , गाय के घी का दीपक जलाएं -सात बार परिक्रमा करें। -तुलसी मंत्र , तुलसी स्त्रोत् और तुलसी आरती करें। तुलसी जी को रविवार और एकादशी के दिन जल देना वर्जित है, कहते हैं वृंदा इस दिन व्रत रखती थी। तुलसी का वैज्ञानिक नाम ओसिमम टेनुरफ्लोरम है, यह लैनियासी परिवार में आया है , यह बारहमासी सुंगधित पौधा है। यह एक द्बिबीजपत्री तथा शाकीय पौधा है। यह एक लचीला पौधा है जिस कारण कठिन परिस्थितियों में भी उग जाता है। वेदों के अनुसार इसे गुरुवार को लगाना शुभ होता है। अगर बात करें औषधीय गुणों की तो तुलसी के सेवन से गर्मी, सर्दी में हमेशा एक प्रतिरक्षा प्रणाली बनी रहती है। इसकी पत्तियों के सेवन से बुखार, दिल से जुड़ी बिमारियाँ, पेट दर्द ,मलेरिया, बैक्टीरियल सक्रंमण आदि में फायदा मिलता है। इसके पत्ते भूख बढ़ाने में सहायक होते हैं। इसकी पूजा के समय कुछ बातों का थान रखना चाहिए वो इसप्रकार है। -हमेशा घी का दीपक ही जलाना चाहिए। -इसकी जड़ों में सिंदूर नहीं लगाना चाहिए, अगर लगाना है तो किसी तने पर हल्का से लगा दे। मिट्टी दूषित होती है। सिंदूर से पौधा सूख सकता है। -तुलसी की मिट्टी में पूजा-पाठ की सामग्री न छोड़े और अगरबती न जलाएं। -इसके आस-पास गंदगी इक्कठ्ठी न करें। -जूते या चप्पल पास न रखें। – शिवलिंग से तुलसी जी को दूर रखें क्यूंकि भगवान शिव जी द्वारा ही इस वृंदा के पति जलंधर को मृत्यु प्राप्त हुई थी। इसीलिए शिवजी पर कभी भी तुलसी नहीं अर्पित करनी चाहिए। – झाडू तुलसी जी से दूर रखें -काँटेदार पौधे तुलसी जी के आस-पास न रखे। तुलसी जी की पूजा करने से शुभ फल मिलते हैं। नकारात्मक उर्जा का सकारात्मक उर्जा में बदलाव होता है। यह मनुष्य में नई उर्जा का संचार करती है। मनुष्य को माँ लक्ष्मी, श्री विष्णु दोनों का आर्शीवाद मिलता है। श्रद्धा से की पूजा से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

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AI — संचार के नवीनीकरण का यंत्र ।

अगर वैज्ञानिक भाषा में कहे तो ये कृत्रिम बुद्धिमता प्रौधिगिकी कहलाता है। कृत्रिम बुद्धिमता अर्थात जिस प्रकार मानव कार्य करने हेतू अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है उसी प्रकार मशीने भौं कार्य करने हेतू पूर्ण रूप से सक्षम होंगी। सरल शब्दों में एक मशीन में सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना । AI, कम्यूटर साईस  की एक एडवांस शाखा है। उदाहरणतः कम्पयूटर नियंनित्र रोबोट, माइक्रोसाफ्ट आदि। AI के प्रमुख शाखाएं शामिल हैं: मशीन लर्निंग (Machine Learning): यह उपकरणों को डेटा से सीखने की क्षमता प्रदान करता है, जिससे वे कार्यों को स्वतंत्रता से सीख सकते हैं। न्यूरल नेटवर्क (Neural Networks): ये हमारे दिमाग की तरह काम करने वाले सिस्टम हैं, जिन्हें लक्ष्य प्राप्ति, संदेश प्रसंस्करण, और और निर्णय लेने की क्षमता होती है। गहरा लर्निंग (Deep Learning): यह मशीन लर्निंग का एक उपशाखा है जो बहुत बड़े डेटा सेट्स को अध्ययन करता है और उससे सीखता है।         भारत की बात करें तो यह बहुत तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है।हर क्षेत्र में निजी, सार्वजनिक और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी महत्ता सिद्ध कर रहा है। समय परिस्थितियों के विश्लेषण के बाद मशीने विस्तृत क्षेत्र जैसे मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग रोबोटिक्स आदि में अपना वर्चस्व साबित कर रही है।             जीवन को बेहतर बनाने के लिए, शोधकर्ता का नई दवाईयों को विकसित करना, बिमारियों का निदान, प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी सबसे अवगत कराता है।आज के युग में  AI  हर क्षेत्र में  महत्व रखता है। शिक्षा   :- आज के युग में शिक्षा पाना बिना AI के असंभव सा प्रतीत होता है। विधार्थी को अपने देश ही नहीं अपितू विदेश की भी पूर्णत: जानकारी होती है। रक्षा मंत्रालय    :-    AI निर्मित राष्र्टीय रक्षा और  सेना के लिए शक्तिशाली उपकरण  देश को अग्रसर करते है। ड्रोन की मदद से हम आसानी से कंटक रास्ते को पहचान सकते हैं। ग्रामीण विकास   :-  हमारा देश कृषि प्रधान देश है और कृषि के बिना तो देश का विकास ही अधुरा है तो हमारी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हमारे ग्रामीण क्षेत्र में भी कमाल दिखा रही है। स्वास्थ्य    :-  चिकित्सा जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसकी हर एक व्यक्ति को जरूरत है और AI के द्वारा र्निमित उपकरणो की मदद से बड़ी से बड़ी  बिमारियों का निदान हो रहा है। शहरी विकास- AI की मदद से  दिन-रात शहर उन्नति कर रहे है। बड़ी से बड़ी बिल्डिंग बनाने का कार्य हो या औधौगिक क्षेत्र या फिर चिकित्सालय, शिक्षण संस्थाएं इसकी छत्र-छाया में सब फल-फूल रहे हैं। रोजगार – रोजगार हर देश की एक महत्वपूर्ण कार्य-प्रणाली है क्यूंकि रोजगार हर एक के लिए जरूरी है। और AI अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अंतर्गत रोजगार के अवसर अनगिनत  है। ΑI आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज के युवा की पहली पसन्द है। इसके आने से देश तरक्की के रास्ते पर अग्रसर है। हर क्षेत्र इसके आगे नतमस्तक हैपरन्तु AI से नुकसान भी है हर चीज़ का एक नकारात्मक पहलू भी होता है इससे नौकरियाँ खत्म होने का खतरा भी है आजकल इसी का एक उदाहरण चैट बोट है अगर ये सफल होता है तो कंपनियां नौकरियां निकालना बंद कर देगी। निजी सुरक्षा पर खतरा हरदम बरकरार रहता है क्यूंकि पूरा A I system डेटा पर निर्भर होगा और इंटरनेट का प्रयोग करने वाले की प्राइवेसी पर पर इसका प्रभाव हो सकता है। आने वाली पीढ़ी को ये आलसी और AI पर निर्भर रहने वाला इन्सान बना सकता है। सैन्य क्षेत्र में भी अगर AI निर्मित उपकरण होंगे तो उन पर निर्भर होना होगा पर अगर मशीन खराब हो जाए  तो घातक परिणाम हो सकते है अंत में AI जहाँ तरक्की का महत्वपूर्ण हथियार है वहीं यह मानव के लिए खतरा भी है। कह सकते है अति किसी भी चीज की भयावह होती है।

Life

“अस्वीकृति”

अस्वीकृति’  शब्द शायद समझ ही न आए, पर इस शब्द को अंग्रेजी में लिखूँ तो एकदम से समझ आ जाएगा। चलिए बता ही देती हूं ‘Rejection’ रिजैक्शन। अब तो दिमाग चलने लगा होगा। Rejection अर्थात ‘अस्वीकृति’ एक शब्द ही नहीं जिसके भी जीवन में आता है उसका मनोबल गिरा देता है, निराशा से भर देता है। इतनी लगन, मेहनत से खुद को तैयार करता है इन्सान और ‘अस्वीकृति ‘ एक ही क्षण में सारे सपनों पर पानी बिखेर देती हैं। असफलता मनुष्य को पीछे धकेलती है।। कमज़ोर बनाती है। मानव हृदय कोमल होता है ,निर्मल होता है और वो ऐसी परिस्थितियों में परेशान हो जाता है। मानसिक परेशानियाँ उसे घेरने लगती है। ‘अस्वीकृति’ एक कड़वी सच्चाई है जीवन की, जो हर एक इन्सान की जिंदगी में आती है। कभी स्कूल में, कभी कालिज़ में, कभी-विश्वविद्यालय और कभी नौकरी में। ये हमारी जिंदगी का सत्य है। ऐसा शायद ही कोई इन्सान मिले जो कभी असफल न हुआ हो । खुद की नज़र में असफल होने के बाद खुद को नाकारा समझने लगते हैं। ये सोच हमें खुद की नज़र में गिराती है और हमसे हमारा आत्मविश्वास छीनती है। पर असफलता  ही सफलता की पह‌ली सीदी है। जानते है ‘अस्वीकृति ‘मनुष्य, को मजबूत बनाती है, उसे और ज्यादा निखारती है। सोना, हीरा यूँ ही तो नहीं चमकते ,उन्हें भी आग में तपकर ,कारीगर रगड-रगड कर उन्हें निखारते है । लोहा आग में तपकर क्या -२ बन जाता है। अंधेरी रात में तेज हवा के झोंको को सहते हुए वो दिया पूरी रात टिमटिमाता रहता है। हर रात के बाद सुबह होती है। अतः मनुष्य को अस्वीकृतियों से घबराना नहीं है बस खुद को मजबूत बनाना है। अपनी सोच को सकारात्मक रखें। इस सोच के साथ के आगे बढ़े कि ये ‘अस्वीकृति’ आपको आगे बढ़ा रही है। आप निराश न हो और अपनी कमी जानने का प्रयास करें। जब अगली बार हो तो आप नए उत्साह से आगे बढ़े। हर अस्वीकृति आपको कुछ न कुछ सिखाती है, उसे दिल से कभी न लगाए । लोगो को क्या है, कुछ तो लोग कहेंगें । अतः व्यर्थ ही दूसरों की बातों पर ध्यान न दे। आत्मविश्लेण करें। आत्मविश्लेषण अर्थात अपने आप को समझे ,अपनी कमियों को स्वीकार कर उन्हें दूर करें तांकि असफलता आपसे दूर हो जाए। सफलता जीवन का लक्ष्य है और असफलता चुनौतियों का। जो इन्सान चुनौतियों का सामना कर, अपनी लक्ष्य को बेधता हुआ आगे बढ़ जाता है, सफलता उसका रास्ता कभी नहीं रोकती। एक अस्वीकृति आपसे आपका परिचय नहीं कराती बल्कि आपको विफलता को त्याग सफलता की और अग्रसर करती है। किसी की ‘ना’ आपके जीवन का ध्येय नहीं है। आपके जीवन का ध्येय आपकी हिम्मत,  हौसला है और आत्मविश्वास है। मानव-जीवन अवसरों से भरा हुआ है अतः नकारात्मक सोच पीछे छोड़ सकारात्मक सोच ले ,आगे बढ़े । संघर्षो का सामना करें, सही निर्णय ले । दिल की सुने । अस्वीकृति से नया सीखे और जीवन पथ पर अग्रसर रहे।

Lifestyle

“नमस्ते”

भारत की आत्मीयता की पहचान “नमस्ते” आज पूरे विश्व के लिए एक पहचान बन चुका है। नमस्ते दो व्यक्ति जब एक दूसरे से मिलते हैं तो वह सम्मान में एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। प्रसन्न मन से मिलना,एक दूसरे के प्रति आभार प्रकट करना, शुभकामनाएं देना  यह सब नमस्ते के निमित्त है।              जब कोई अतिथि आ जाए, कोई अपना सामने आ जाए, तो प्रसंता होती है, मन प्रफुल्लित होता है, इसी भाव को  प्रकट करने के लिए  विनम्र भाव से दोनों हाथ जोड़कर हृदय के पास  लाते हैं।  सर को थोड़ा झुका कर “नमस्ते ” कहते हैं। इसका सीधे-सीधे संबंध मन के भाव से  होता है। मनुष्य का मन निर्मल होता है। इसके अंदर की  चेतना ईश्वरीय होती है। और यह चेतना इस नमस्ते को साकार रूप देती है।                                                                                                                    ।                 ” नमस्ते”  शब्द संस्कृत के शब्द  नमस  से बना  है।  नमस यानी झुक गया।  असते यानि सर।   अर्थात आपके सम्मान में मैं झुक गया।                     अध्यात्म की दृष्टि से दोनों हाथ जोड़कर एक कर देते हैं जो आपको नवचेतना से भरता है। हमारी संस्कृति का प्रतीक “नमस्ते ” ,हम भारतीयों की पहचान “नमस्ते”,  सिर्फ हमारी परंपरा ही नहीं अपितु वैज्ञानिक दृष्टि , मनोवैज्ञानिक दृष्टि , योगअनुसार भी फायदेमंद है।                        कोरोनाकाल के  कारण  नमस्ते विश्व व्यापी बना। क्योंकि इसमें दूर से ही अभिवादन किया जाता है।   जबकि विश्व में  हाथ मिलाते हैं।  वायरस हाथ के जरिए ही एक दूसरे तक जाते हैं।  इसे दूर रखने में ही फायदा है ताकि वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में  स्थानांतरित न हो।                         कभी जब आप गुस्से में होते हैं तो नमन करें। दोनों हाथों को जोड़ें ,  हृदय के पास लाए ,लंबी सांस लें  देखिएगा गुस्सा गायब हो जाएगा, मन शांत हो जाएगा, और मुस्कान खुद ब खुद आ जाएगी।                        “नमस्ते “की  भाव मुद्रा आपके योग में बहुत उचित है। जब आप हाथ जोड़ते हैं और दोनों हथेलियों को दबाते हैं ,वह भी सीधे    हृदय चक्र के पास , तो जो  शरीर में  तरंगे उत्पन्न होती हैं उनसे चेतना जाती है। मन तनाव मुक्त होता है। नकारात्मक भाव कम और सात्विक भाव बढ़ जाते हैं। मन एकाग्र चित्त होता है।                           नमस्ते की मुद्रा में हाथों की कलाई , उंगलियों की निर्धारित अवस्था में मिलाने से हाथों का योग होता है।                          इंसानियत ऊपर उठकर आती है। दूसरों में  दैवीय रूप नजर आता है।  मैं की भावना खत्म होती है। आध्यात्मिक भाव का विकास होता है। इंसान  व्यवहारकुशल होता है।       भारत की आत्मीयता की पहचान “नमस्ते” आज पूरे विश्व के लिए एक पहचान बन चुका है। नमस्ते दो व्यक्ति जब एक दूसरे से मिलते हैं तो वह सम्मान में एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। प्रसन्न मन से मिलना,एक दूसरे के प्रति आभार प्रकट करना, शुभकामनाएं देना  यह सब नमस्ते के निमित्त है।              जब कोई अतिथि आ जाए, कोई अपना सामने आ जाए, तो प्रसंता होती है, मन प्रफुल्लित होता है, इसी भाव को  प्रकट करने के लिए  विनम्र भाव से दोनों हाथ जोड़कर हृदय के पास  लाते हैं।  सर को थोड़ा झुका कर “नमस्ते ” कहते हैं। इसका सीधे-सीधे संबंध मन के भाव से  होता है। मनुष्य का मन निर्मल होता है। इसके अंदर की  चेतना ईश्वरीय होती है। और यह चेतना इस नमस्ते को साकार रूप देती है।                                                                                                                    ।                 ” नमस्ते”  शब्द संस्कृत के शब्द  नमस  से बना  है।  नमस यानी झुक गया।  असते यानि सर।   अर्थात आपके सम्मान में मैं झुक गया।                     अध्यात्म की दृष्टि से दोनों हाथ जोड़कर एक कर देते हैं जो आपको नवचेतना से भरता है। हमारी संस्कृति का प्रतीक “नमस्ते ” ,हम भारतीयों की पहचान “नमस्ते”,  सिर्फ हमारी परंपरा ही नहीं अपितु वैज्ञानिक दृष्टि , मनोवैज्ञानिक दृष्टि , योगअनुसार भी फायदेमंद है।                        कोरोनाकाल के  कारण  नमस्ते विश्व व्यापी बना। क्योंकि इसमें दूर से ही अभिवादन किया जाता है।   जबकि विश्व में  हाथ मिलाते हैं।  वायरस हाथ के जरिए ही एक दूसरे तक जाते हैं।  इसे दूर रखने में ही फायदा है ताकि वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में  स्थानांतरित न हो।                         कभी जब आप गुस्से में होते हैं तो नमन करें। दोनों हाथों को जोड़ें ,  हृदय के पास लाए ,लंबी सांस लें  देखिएगा गुस्सा गायब हो जाएगा, मन शांत हो जाएगा, और मुस्कान खुद ब खुद आ जाएगी।                        “नमस्ते “की  भाव मुद्रा आपके योग में बहुत उचित है। जब आप हाथ जोड़ते हैं और दोनों हथेलियों को दबाते हैं ,वह भी सीधे    हृदय चक्र के पास , तो जो  शरीर में  तरंगे उत्पन्न होती हैं उनसे चेतना जाती है। मन तनाव मुक्त होता है। नकारात्मक भाव कम और सात्विक भाव बढ़ जाते हैं। मन एकाग्र चित्त होता

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IPL 2008 से 2024 तक

खेल, जीवन का आयाम, व्यायाम का एक प्रकार । खेल चाहे गली-नुक्कड़ के हो, विद्यालय-महाविद्यालय के हो या फिर राष्ट्रीय- अर्तराष्ट्रीय, जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं। मानव शरीर एक मशीन की तरह है जिमे उर्जावान बनाने हेतू मरम्मत, ग्रीस आदि की समय-समय पर जरूरत पड़ती रहती हैंअ और यह खेल शरीर रुपी मशीन की कमी को पूर्ण करने में सहायक होते हैं।              क्रिकेट हमारे देश ही नहीं अपितु विश्व-भर में प्रसिद्ध है। इसमें भी टेस्ट मैव, वन-डे मैच और ट्वंटी-वंटी मैच सब अपना प्रभुत्व रखते हैं। 2008 से खेल जगत में क्रिकेट की एक और श्रृंखला जुडी – IPL अर्थात इंडियन प्रीमियम लीग । यह भारतीय क्रिकेट के अत्यंत लोकप्रिय टूर्नामेंटो में से एक है।              IPL एक उच्च मूख्य उद्देश्य भारतीय क्रिकेट को एक व्यावसायिक मंच प्रदान करना है जिसमें खिलाडी अपना कौशल दिखा सके। इस लीग में   भारतीय खिलाडी ही नहीं बल्कि विदेशी खिलाड़ियोंको भी मौका दिया जाता हैऔर  यह नीति मैच को दर्शकों के बीच रोचकता पैदा करती है। 12 सितंबर 2007 आईपीएल के लिए एक स्वर्णिम दिन स्थापित हुआ। इसदिन ही ललित मोदी ने नई दिल्ली में एक समारोह में इंडियन प्रीमियम लीग का शुभारंभ किया। इस लांचिग में राहुल द्रविड़, सौख गांगुली, ग्लेन मैक्ग्रा खिलाड़ी उपस्थित हुए।            आईपीएल का उद्घाटन सत्र 2008 में आयोजित हुआ जिसमें देश भर से 8 टीमों का गठन किया गया। टीमो  का स्वामित्व विभिन्न निवेशको केपास था, जिसमें बालीवुड सितारे, व्यवसायी और उद्योगपति शामिल थे। पहला मैच 8 अप्रैल 2008 को कोलकाता नाइट राइडर्स और रायल चैलेंजर्स बैंगलोर के बीच खेला गया। टूनागैट सफल रहा,  बड़ी संख्या में भीड उमड़ी और महत्वपूर्ण राजस्व प्राप्त हुआ             यह टूर्नामेंट लगभग दो महीने की अवधि में खेला जाता है। आज इसमें 10 टीमे खेलती है। टीमें  राउंड – राबिन पारूप में प्रतिस्पर्धा करती है, जिसके बाद प्लेऑफ होता है और इसका समापन आईपीएल फाइनल में होता है। हालाँकि, आईपीएल विवादो से रहित नहीं रहा है। 2013 में मैच फिक्सिंग से लीग घिर गई थी, जिसमें कई खिलाड़ियों और अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया।        चुनौतियों के बावजूद, आईपीएल  विश्व प्रस्तिद्ध लीग है। क्रिकेट के इस प्रारूप ने दर्शकों की व्यस्तता बढ़ाने में मदद की है। यह लीग क्रिकेट के व्यावसायीकरण के मामले में गेम चेंजर रही है। प्रत्येक मुंबई इंडियंस ने सबसे ज्यादा आईपीएल ट्राँफी जीती है। रोहित शर्मा ने 5खिताब अपने नाम किए है।            IPL टूर्नामेंट ने संघर्ष भरे मुकाबलों, खिलाड़ियों के  शानदार प्रदर्शन और उत्साहभरे दर्शकों के सामने, IPL लीग  ने  क्रिकेट के मैदान में नई उर्जा और रोमांचका संचार काया है। इस लीग ने  राष्ट्रीय और अर्न्तराष्षट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों को पहचान दिलाई है                    आईपीएल का भविष्य क्पा है यह कहना तो कठिन है  पर  यह भारतीय क्रिकेट के लिए महत्वपूर्ण है। इस लीग की लोकप्रियता क्रिकेट उत्साहियों को आकर्षित करती रहेगी। आगे चलकर, नए खिलाड़ी सामने आ सकते हैं  भारतीय क्रिकेट को नई दिशाएँ देने के लिए उत्सुकता बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, आईपीएल के संगठन में नए नियम और प्रक्रियाएं शामिल की जा सकती हैं जो खेल को और रोचक बना सकती हैं।

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हम सब मिलकर एक हो सकते है बस एक होने के लिए हम सबको मिलकर रहकर आगे बढ़ना होगा |

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