अनमोल उपहार
पापा जी….पापा जी….आपसे कुछ पूछूं….
हां मेरी प्यारी सी राजकुमारी पूछो…..
आप रोज रात मे इतनी देरी से कयुं आते हो….
मे और आराध्या दोनों सो जाती है हम दोनों बहनों का बडा मन होता है हमभी परी और शानू की तरह अपने पापा के साथ खेले……छ: वर्षिय आध्या ने अपने पापा मोहनबाबू के गालो को चूमते हुए पूछा……
बिटिया मन तो मेरा भी करता है आप दोनों के साथ खेलने का मगर कया करुं मजबूरी ऐसी है कि….
मजबूरी ….कैसी मजबूरी पापा जी ……पांच वर्षीय आराध्या भी मोहनबाबू के गले लगकर बडे प्यार से बोली ……
अच्छा तो आपको भी जानना है…..बेटा ….मेरी फैक्ट्री हमारे घरसे बहुत दूर है वहां से पैदल आता हूं ना…..
तो पापाजी आप भी एक साईकिल ले लो ना शानू के पापा की तरह ….वो ट्रिन ट्रिन करते हुए आते है …
अच्छा मेरी बेटियों ले लूंगा जब पैसे इकट्ठा हो जाएंगे ….जाओ अब तुमदोनो जाकर खेलों ….
आध्या….आराध्या…. चलो अपने पापा को सोने दो बेटा आज रविवार का ही तो दिन मिलता है उन्हें …चलो शाबाश ….बाहर खेलो ….सुधा दोनों बेटियों से बोली
दोनों मुंह बनाते हुए बाहर जाकर बैठ गई ….
थोडी देर मे सुधा बाहर आई….दोनों को उदास देखकर बोली ….कया हुआ तुमदोनो यहां कयुं बैठी हो खेल लो …
नहीं मम्मी ….पहले ये बताओं पापा के पास साईकिल कयुं नहीं है ….
बेटा वो ….
मम्मी प्लीज सच सच बताओ ना ….आराध्या बोली
आराध्या ….तुम्हारे पापा के पास एक साईकिल तो थी मगर एकबार चोरी हो गई थी …
तो पापा दूसरी कयुं नहीं ले लेते मम्मी …इसबार आध्या बोली
बेटा हमारे हालत ऐसे नहीं है …..बेटा वहां गांव में तुम्हारे दादाजी दादीजी …बुआजी ….और यहां हम ….हमारे लिए खानपान घरखर्च ….तुमदोनो की पढाई …घर का किराया ….इनसब मे कुछ बचता भी तो नहीं इसलिए तो मे भी समय निकालकर सिलाई करती हूं लोगों के कपडों की …….
ओह….दोनों एकसाथ बोली ……
सुधा के अंदर जाते ही दोनों बहनों ने एकदूसरे की ओर देखा ….यार आराध्या ….इसका मतलब पापा के पास पैसे नहीं बचते …इसलिए वो अपनी फैक्ट्री पैदल आते जाते है
हां दीदी इसलिए ही वो देरी से आते है और जल्दी चले जाते है …..
यार आराध्या कुछ सोचना पड़ेगा……आध्या बोली
कया ….हम तो छोटे से बच्चे हैं दीदी ….आराध्या बोली
तुझे याद है पापा रोज हमें जेबखर्ची के लिए मम्मी को पांच पांच रुपये देकर जाते है जो हमदोनों अक्सर अपनी ड्रेस के लिए गुल्लक मे जोडती रहती है ….
हां दीदी तो ….
तो हम अपनी गुल्लक तोडकर देखते है….कहते हुए आध्या के चेहरे पर चमक आ गई….
अरे वाह दीदी ….चलो ….आराध्या बोली
शशशशशशश….आराम से पापा सो रहे है और मम्मी को बताऐंगे मगर बाद में चल अभी…. कहकर आध्या आराध्या का हाथ थामे हुए चल पडी….दोनों ने चुपचाप अपनी गुल्लक तोड़ दी…..सारे सिक्के और रुपये गिनने के बाद कुल सात सौ रुपये निकले….पैसे गिनने के बाद दोनों निराश हो गई ….
यार आराध्या इतने में साईकल नहीं आएगी….मैने शानू की मम्मी को कहते हुए सुना था पूरे हजार रुपये की आई हैं उनकी साईकिल….
तो दीदी अब कया करें…. आराध्या उदास होते हुए बोली
चल मम्मी से पूछते है शायद कुछ बात बन जाए….
दोनों ने सुधा को जाकर पूरी बात बताई तो वह भी रो पड़ी दोनों बच्चियों को गले लगाकर वह बोली…..कितनी प्यारी कितनी मासूम सोच है तुम्हारी……रुको मे भी कुछ ढूंढती हूं कहकर सुधा चावलों और दालों के डिब्बों को टटोलने लगी आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी बचत के रुप मे साढे तीन सौ रुपये इकट्ठा हो गए….अब तीनों की एकत्रित जमा राशि एक हजार पचास रुपये थी सुधा मोहन को जगाने के लिए जाने लगी तो आध्या ने रोक दिया…. मम्मी पापा को उपहार स्वरूप देगे वरना वह नहीं लेगे साईकिल कोई बहाना बनाकर मना कर देगे….
सुधा की ओर देखकर आराध्या भी यही बोली….
ठीक है …सुधा मुस्कुरा कर बोली….
अगले दिन तीनों एक पुरानी साईकल की दुकान पर पहुंच गए और दूर से खडे होकर साईकिलों को देखते रहे
दुकानदार बहुत देर से देख रहा था सो उसने उन्हें को बुला कर पूछा क्या बात है बहनजी ….बच्चों के लिए साईकिल लेनी है कया….
सुधा कुछ कहे इससे पहले आध्या और आराध्या ने अपने दिल की बात बता दी….अंकलजी…. हमें पापाजी के लिए साईकिल चाहिए वो रोज हमारे लिए पैदल चलकर फैक्ट्री आते जाते है….
दोनों बच्चियों की बात सुनकर दुकानदार की आँखें भी भीग उठी….उसने एक पुरानी पर अच्छी वाली साईकल दिखाई तो दोनों बच्चियां वहीं खुशी से उछल पड़ी….
कितने की है अंकलजी….
बेटा …..इसकी कीमत का तुम्हारे एहसासों से कोई मुकाबला नहीं है….मैने इसे खरीदकर सही रुप मे तैयार करके लगभग बारह सौ तक बेचने की सोची थी मगर तुमदोनो की बातों को सुनकर मुनाफा कमाने की सोचना भी पाप लगता है तो तुम इसकी खरीद मात्र आठ सौ रुपये ही दे दो…..
सचमुच अंकलजी…. दोनों बच्चियां एकसाथ बोली….
उन्होंने दुकानदार को आठ सौ रुपये देकर साईकिल ले ली….
रात को जब मोहन थकाहारा फैक्ट्री से घर लौटा तो…..साईकल घर के अंदर खड़ी थी और दोनों बेटियां छुपकर देख रही थी….पापा के चेहरे को….
मोहन ने यूहीं साईकल को देखा तो वह सोच में पड गया उसने इधर उधर देखा और फिर साईकिल पर ऐसे स्नेहभरा हाथ फिराने लगा मानों वह कोई छोटा सा बच्चा हो…. इससे पहले वो सुधा से साईकिल के बारे मे पूछता की ये किसकी है तभी आध्या और आराध्या उसके सामने ताली बजा कर नाच उठी….पापा जी….कैसा लगा उपहार…..
उपहार…..मोहन ने सुधा की ओर देखा तो वह भी भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए बोली ….जी …आपकी बेटियों ने आपके लिए अपनी ओर से उपहार खरीदा है और तमाम बातें बताने लगी….मोहन की आँखों से आँसू बहने लगे….वह तुरंत दोनों बच्चियों से लिपट गया….
और बोला….सचमुच ये तो उसके लिए अनमोल उपहार है ….कयोंकि इसमें उसके परिवार का प्यार और एहसास जुडा हुआ है ….थैक्यू मेरे बच्चों ….कहकर आध्या और आराध्या दोनों को सीने से लगा लिया…..
तभी आराध्या बोली….पापा इसमें मम्मी का भी प्यार जुडा है….तो उन्हें भी ….
मोहन ने सुधा की ओर मुस्कुरा कर देखा और उसे भी खींचकर सीने से लगा लिया ….सभी की आँखे भीगी हुई थी मगर चेहरे खुशी से भरे हुए थे।
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2 Comments
Heart touching story
Very nice sir