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बिहार में पहले चरण में महज 48 फीसदी मतदान, नवादा में सबसे कम वोट पड़े

औरंगाबाद के इस बूथ पर 3 वोट ही पड़े, पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी कम वोटिंग

 

Bihar Lok Sabha Election 2024 के पहले चरण में राज्य की चार सीटों – औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई पर वोटिंग का महत्वपूर्ण दिन था। इस दिन बिहार के नागरिकों ने अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए लोकतंत्र के महत्व को पुनः साबित किया।

पहले चरण में मतगणना का प्रक्रिया महज 48.23 फीसदी मतदान के साथ समाप्त हुआ। यह मतदान की दर सामान्य तौर पर बिहार में उम्मीद की जानी जाती है, जिसमें लोगों का जोरदार समर्थन दिखता है।

नवादा में मतदान की दर सबसे कम रही, जो राज्य के पुराने सांसदों के प्रति उत्साह की कमी को दर्शाता है। नवादा एक महत्वपूर्ण सीट है, और इसे लेकर इस बार के चुनावी प्रक्रिया में कमी के संकेत हैं।

चुनावी प्रक्रिया के इस पहले चरण में लोगों का सक्रिय भागीदारी एक सकारात्मक संकेत है, जो लोकतंत्र की मजबूती को दिखाता है। यह भी दिखाता है कि बिहार के लोग अपने निर्णय लेने के लिए सजग हैं और उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए समर्थ हैं।

चुनावी प्रक्रिया के बाद, नतीजों की प्रतीक्षा होगी, जो इस बार के चुनाव के नतीजों को स्थायी करेंगे। यह चुनाव राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को परिभाषित करेगा और देश के राजनीतिक रंगमंच पर भी अपना प्रभाव डालेगा।

बिहार की चार सीटों पर मतदान की उच्च दर ने दिखाया कि लोगों की राजनीतिक जागरूकता बढ़ रही है और उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग करने के प्रति गंभीरता है। यह एक सकारात्मक संकेत है कि लोकतंत्र की आधारभूत मूल्यों को समझा और माना जा रहा है।

इसे लेकर, निर्वाचन आयोग और सभी राजनीतिक दलों को सुनिश्चित करना होगा कि चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष, निष्प्रेरण और शांतिपूर्ण रहे। लोगों की आस्था को समझते हुए, वे सभी पक्षों के लिए उचित व्यवहार दिखाना आवश्यक है, ताकि लोकतंत्र की सच्चाई और स्थायित्व को बनाए रखा जा सके।

 

बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण में कड़ी सुरक्षा के बीच मतदान का आयोजन हुआ। इस दौरान बिहार की चार सीटों – औरंगाबाद, गया, नवादा, और जमुई पर वोटिंग की प्रक्रिया का आयोजन किया गया। यहां तक कि चारों सीटों पर कुल 48.23 फीसदी की वोटिंग हुई, जो मतदान की दर में कुछ कमी का प्रमाण है। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसमें पार्टियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण परीक्षण था।

निर्वाचन विभाग के अनुसार, इस बार के चुनाव में 2019 के मुकाबले कुछ कम वोटिंग दर्ज की गई है। इस बार की चुनावी उत्सव में कुल 7903 बूथों पर मतदान की प्रक्रिया का आयोजन किया गया था। उसमें से 5021 बूथों को अत्यंत संवेदनशील घोषित किया गया था। चारों सीटों पर 76,01,629 मतदाता हैं।

वोटिंग की दर नवादा में सबसे कम रही, जहां केवल 41.50 फीसदी वोट पड़े। उसके बाद औरंगाबाद और नवादा में 50-50 प्रतिशत वोटिंग हुई, जबकि गया में सबसे अधिक 52 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई।

मतदान के दिन, बिहार के कई महत्वपूर्ण नेताओं ने भी अपना मताधिकार प्रयोग किया। गया से आरजेडी के प्रत्याशी कुमार सर्वजीत ई, नवादा से आरजेडी के श्रवण कुशवाहा, और जमुई से चिराग पासवान के जीजा अरुण भारती ने मतदान किया।

बिहार में मतदान प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही। कोई भी हिंसा की कोई घटना नहीं रिपोर्ट की गई। इससे साफ होता है कि लोगों ने चुनावी प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक और शांतिपूर्णता से सम्पन्न किया।

चारों सीटों पर 38 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जिनमें भारतीय गठबंधन (NDA) और राष्ट्रीय देमोक्रेटिक गठबंधन (NDA) के प्रत्याशियों के बीच मुख्य मुकाबला होगा।

चुनाव के पहले चरण में कुल 7903 बूथ बनाए गए हैं, जिनमें 5021 बूथों को अति संवेदनशील घोषित किया गया है। गया में 995, औरंगाबाद में 1701, नवादा में 666, और जमुई में 1659 बूथों को अत्यंत संवेदनशील घोषित किया गया है।

इस प्रकार, बिहार के पहले चरण के लोकसभा चुनाव 2024 में मतदान की प्रक्रिया सम्पन्न हुई। अब नतीजों का इंतजार है, जो इस चुनावी महामार्ग में बड़े मायने रखेंगे। यहां तक कि जनता के निर्णयों के आधार पर देश के राजनीतिक परिदृश्य को भी परिभाषित करेंगे।

 

 पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी कम वोटिंग

बिहार के पहले चरण के लोकसभा चुनाव 2024 में पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। यह एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक तथ्य है जो चुनावी प्रक्रिया में दर्ज किया गया है।

पिछले साल, औरंगाबाद, गया, नवादा, और जमुई के लोकसभा चुनाव में कुल 53.74 फीसदी मतदान हुआ था। इस बार की चुनाव में, यह वोटिंग दर 48.23 फीसदी हुई है। इससे स्पष्ट होता है कि चुनाव में उत्साह और रुचि में कुछ कमी आई है।

यह डेटा शाम 6 बजे तक का है, और अंतिम मतदान प्रतिशत बदल सकता है। हालांकि, इस संकेत से साफ होता है कि पिछले साल के चुनाव की तुलना में इस बार वोटिंग दर में गिरावट देखने की संभावना है।

इसमें कई कारण हो सकते हैं। पिछले कुछ सालों में हुए चुनावों के बाद कई राजनीतिक परिवर्तन और स्थितियों में बदलाव आया है, जिसका असर लोगों के चुनावी उत्साह पर भी पड़ा हो सकता है। इसके अलावा, सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक मुद्दों पर लोगों की ध्यानाकर्षण विशेष रूप से पिछले कुछ सालों में बढ़ा है, जो उनके वोटिंग प्रवृत्तियों को प्रभावित कर सकता है।

इस संकेत से साफ होता है कि चुनाव में लोगों की रुचि और भागीदारी में कुछ कमी आई है, जो एक निराशाजनक विकल्प हो सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि पार्टियों को और भी मेहनत करनी होगी ताकि वे लोगों की रुचि को पुनः जीत सकें और उन्हें वोटिंग के लिए प्रेरित कर सकें।

इस बार की चुनाव में कम होने वाली वोटिंग दर एक सचेतनी का संकेत है, जो राजनीतिक दलों को लोगों की आवाज को समझने और समर्थन प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता को दर्शाता है। इससे स्पष्ट होता है कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को लोगों की मांगों और आवश्यकताओं को समझने और उनके लिए उत्तरदायित्वपूर्ण नीतियों का विकास करने की आवश्यकता है।

इस विवेचना के साथ, इस चुनाव में हुई कम वोटिंग दर को एक चेतावनी साबित किया जा सकता है, जो राजनीतिक पार्टियों को और भी अधिक लोगों को सम्मिलित करने और उनके मामलों को समझने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह भी दिखाता है कि लोगों की रुचि और सक्रियता को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक प्रक्रिया में और भी अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

 

औरंगाबाद के इस बूथ पर 3 वोट ही पड़े

औरंगाबाद प्रखंड के नेहुटा गांव में आयोजित लोकसभा चुनाव 2024 में एक अत्यंत चिंताजनक घटना सामने आई है, जहां ग्रामीणों ने वोटिंग का बहिष्कार किया। इस बूथ पर केवल महज तीन वोट पड़े, जो चुनावी प्रक्रिया के लिए एक अत्यंत निराशाजनक संकेत है।

प्रारंभिक प्रारूप में ही यह स्पष्ट हो गया था कि लोगों की उत्सुकता और रुचि में कमी है, लेकिन यह चौंकाने वाला है कि उन्होंने वोटिंग का पूरी तरह से बहिष्कार किया। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन व्यापक रूप से यह उस सामाजिक और आर्थिक स्थिति का परिणाम हो सकता है जिसमें गांव के लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी, जैसे कि सड़क, नाली, और नल जल योजनाएं, लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा, लोगों की जीवनशैली में सुधार की आवश्यकता हो सकती है, जिसमें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की स्थिति शामिल हो। ऐसे माहौल में, जब लोग महसूस करते हैं कि उनके मुद्दों और जरूरतों को ध्यान में नहीं लिया जा रहा है, तो वे अपने वोटिंग का बहिष्कार कर सकते हैं।

यह संकेत भी देता है कि सरकारी अधिकारियों को लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझने और समाधान के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। जब लोगों को उनकी समस्याओं का समाधान मिलने में आशा नहीं होती है, तो वे चुनावी प्रक्रिया के प्रति उत्साहहीन हो सकते हैं।

इस घटना से साफ होता है कि लोगों की समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने के लिए सरकारी अधिकारियों को और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। वे लोगों के बीच जाकर उनकी बात सुनें और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कार्यशील प्रयास करें। इसके अलावा, समाज के सभी वर्गों को समाहित करने के लिए सार्वजनिक संचार के माध्यमों का प्रयोग करना भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे चुनावी प्रक्रिया के महत्व को समझ सकें और अपने वोटिंग के माध्यम से अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें।

 

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